नाकामियों से सीखा बहुत,
फिर भी नाकाम होते रहे,
क्योंकि वो ज़ख्म थे अपनों के दिये,
जिन्हें हम खामोश सीते रहे।
न चाहा कि टूटे किसी रिश्ते की डोर,
फिर भी रिश्तों के मोती बिखरते रहे,
सोच कर कि अपने हो जायेंगे अपने कभी,
हम रिश्तों की माला पिरोते रहे।
दूसरों का गम खुद ओढ़ कर,
साथ जीने के सपने हम संजोते रहे,
जिनकी नावों के थे हम मांझी कभी,
वही हमारी किश्ती डुबोते रहे. . .
फिर भी नाकाम होते रहे,
क्योंकि वो ज़ख्म थे अपनों के दिये,
जिन्हें हम खामोश सीते रहे।
न चाहा कि टूटे किसी रिश्ते की डोर,
फिर भी रिश्तों के मोती बिखरते रहे,
सोच कर कि अपने हो जायेंगे अपने कभी,
हम रिश्तों की माला पिरोते रहे।
दूसरों का गम खुद ओढ़ कर,
साथ जीने के सपने हम संजोते रहे,
जिनकी नावों के थे हम मांझी कभी,
वही हमारी किश्ती डुबोते रहे. . .
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